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शनिवार, 13 जून 2020

आनंद मोहन ज़ुत्शी गुलज़ार देहलवी | उम्र जो बे खुदी में गुज़री है | Poet Diary | Gulzar Dehlvi



उम्र जो बे खुदी में गुज़री है
बस वही आगाही में गुज़री है

कोई मौज ऐ नसीम से पूछे
कैसी आवारगी में गुज़री है

उनकी भी रह सकी न दराई
जिन की अस्कंदारी में गुज़री है

आसरा उनकी रहबरी ठहरी
जिनकी खुद राहज़नी में गुज़री है

आस के जुगनू सदा किसकी
ज़िन्दगी रौशनी में गुज़री है

हम नाशिनी में फकर कर नादाँ
सोहबत ऐ आदमी में गुज़री है

यु तो शायर बहुत से गुज़रे है
अपनी भी शायरी में गुज़री है

मीर के बाद ग़ालिब और इक़बाल
इक सदा इक सदी में गुज़री है







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