नेपाल की सीमा
नेपाल के गोरखा रेजिमेंट अपनी बहादुरी और शौर्ये के लिए जानी जाती है। यही कारण था के मुग़लों के पतन के बाद नेपाल ने अपनी सीमा दाई तरफ बढाकर सिक्किम को अपने में मिला लिया इसके बाद नीचे अवध के तराई भाग तक बढ़ गए और बाई तरफ उत्तराखंड के कुमायु और गढ़वाल को अपनी सीमा में मिला लिया। इसके बाद नेपाल की सीमा उत्तराखंड की सतलुज और सिक्किम की तीस्ता नदी तक हो गयी थी। नेपाल की बढ़ती सीमा को देखते हुए अंग्रेज़ो ने नेपाल से युद्ध कर दिया जिसे आंग्ल नेपाल युद्ध (एंग्लो नेपाल युद्ध) कहा जाता है। इस युद्ध में अंग्रेज़ो को विजय प्राप्त हुई और नेपाल को एक संधि हस्ताक्षर करनी पड़ी। ये संधि थी सुगौली की संधि (1816) । इस संधि के अंतर्गत नेपाल को उत्तराखंड सिक्किम और अवध का तराई छेत्र अंग्रेज़ो को वापस करना पड़ा। जिसके चलते नेपाल की सीमा भी बदल कर उत्तराखंड की सारदा (जिसे काली या महाकाली नदी भी कहा जाता है ) नदी से लेकर नेपाल की मेची नदी तक निर्धारित हो गयी और नीचे का हिस्सा त्रिवेणी बांध से तय हो गया। मौजूदा विवाद इस सीमा को लेकर है खासकर महाकाली नदी को लेकर है ।
भारत का रुख
पहले जो शर्दालु कैलाश मानसरोवर की यात्रा को जाते थे वो सिक्किम के नाथुला दर्रा से से जाते थे। भारत सरकार चाहती थी के हम शर्दालु को उत्तराखंड के लिपुलेक दर्रा से भेजें। इससे कैलाश मानसरोवर की दुरी कम होने के साथ साथ हम चीन पे भी नज़र रख सकते थे। इसी कारण भारत सरकार ने सड़क का विस्तार उत्तराखंड के कला पानी से लिपुलेक दर्रा तक शरू कर दिया जिसका विरोध नेपाल ने करते हुए कहा के ये 80 कम की सड़क उसके छेत्र में आती है।
मौजूद विवाद क्या है
महाकाली नदी का उधगम तीन शाखाओं से होता है लिम्पयाधुरा, कालापानी और लिपुलेक। भारत और नेपाल दोनों सुगौली की संधि को मानते है तो विवाद इस बात को लेकर है भारत का कहना है की महाकाली नदी लिपुलेक से शरू होती है। नेपाल का कहना है के महाकाली नदी लिम्पयाधुरा से शरू होती है। तो सारा विवाद इसी 3 छेत्र को लेकर है।
भारत और नेपाल के रिश्ते
भारत और नेपाल के रिश्ते हमेशा से बड़े अच्छे रहे है। यही कारण है की भारत की सेना में एक गोरखा रेजिमेंट अलग से होती है। भारत ने हमेशा नेपाल की मदद की है अभी हाल ही में भारत ने कोविद 19 से लड़ने के लिए नेपाल को 23 टन मेडिसिन भेट के रूप प्रदान करी है
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