आज निज़ामुद्दीन मरकज़ को लेकर जो खबरें सामने आ रही हैं ये हमें फिर से उसी दलदल मे ढ़केल रही है जिसके आधार पर हाल ही में दिल्ली दंगो की कहानी लिखी गयी और जिसका नुक्सान केवल दोनों तरफ के लोगो को उठाना पड़ा। कोरोना वायरस पर हम कही फिरसे वही गलती तो नहीं दोहरा रहे है ? क्या आज अपनी नाकामी छुपाने का सबसे आसान रास्ता यही रह गया है के समाज को हिन्दू मुस्लमान की बहस में लगा दिया जाए और कोई सवाल ना पूछें।
अगर निजामुद्दीन मरकज़ के कार्येकर्म पर नज़र डालें तो उनका सारा कार्येकर्म 1 मार्च से लेकर 15 मार्च तक सिमित था। इस दौरान देश अपने रोज़ के मामूल से चल रहा था। लेकिन जब 16 मार्च को दिल्ली सरकार पहली अधिसूचना जारी करते हुए 50 लोगो के जमा होने पर रोक लगाती है तो मरकज़ के आयोजको को अपनी जिम्मेदारी और हालत की गम्भीरता को समझते हुए कड़े कदम उठाने चाहिए थे। लेकिन इसके साथ दिल्ली पुलिस भी उतनी ही दोषी है जिसके ठीक नाक के नीछे 3000
- 4000 लोग इक्कट्ठा थे जिसमे विदेशो से आये लोग भी शामिल थे उनको वापस भेजने के लिए कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया गया? जो लोग मरकज़ की कार्येषेली को समझते है उन्हें पता है जमातें एक तय समय के लिए आती है और अपने तय समय तक मरकज़ में या स्थानीय मस्जिदों में ठहरती है। 19 मार्च को दिल्ली सरकार दूसरी अधिसूचना जारी करते हुए दिल्ली में 31 मार्च तक लॉक डाउन घोषित कर देती है ऐसा में ये कहना उचित होगा के मरकज़ में 1000 लोग फस जाते है ना की छुपे होते है। हमें इन दोनों भाषा का भावार्थ समझना चाहिए। यहाँ मरकज़ के जवाब पर भी नज़र डालनी चाहिए जिसमे उन्होंने 2300 लोगो को वापस भेजने की बात कही है। लेकिन उनको अपनी ज़िम्मेदारी लेते हुए ये बताना अत्यंत आवश्यक है की मरकज़ से वो 2300 लोग कहा भेजे गए। क्युकी उनकी कार्येषेली के अनुसार बहुत मुमकिन है के ये लोग देश की भिन -भिन मस्जिदों में गए हो।
आज हम सब लोगो को मिलकर खास करके मीडिया के माध्यम से इस बात पे ज़ोर देना चाहिए के 2300 कहा भेजे गए और मरकज़ में आयोजकों से आग्रह करना चाहिए के वो बताएं उन लोगो के बारे में। लेकिन हम हिन्दू मुस्लमान की बहस में पड़ कर सिर्फ अपनी तबाही ही लिख रहे है। इसके साथ इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए के वो 2300 लोग कोई मुज़रिम नहीं है इसलिए उनके साथ बर्ताव एक मरीज़ और डॉक्टर के बीच जैसा होना चाहिए ना की पुलिस और मुजरिम जैसा ।
एक बहस ये भी सामने आयी है की मरकज़ ही नहीं देश के लगभग सरे बड़े मंदिर भी 19 तक खुले थे, में इसमें न पढ़कर केंद्र की भूमिका पे सवाल उठाऊंगा उसने भी कोरोना वायरस की गम्भीरता को क्यों नहीं समझा और विदेश से आये लोगो को पर्यटक वीज़ा क्यों जारी करती रही। क्या उसकी सारी प्राथमिकता मध्य प्रदेश में सरकार बनाने में थीं ? और 23 मार्च मध्य प्रदेश की शपथ ग्रहण
समारोह के तुरंत बाद 24 मार्च को सम्पूर्ण लॉक डाऊन क्यों घोषित करती है ? 19 तारिख को ही
सम्पूर्ण लॉक डाऊन क्यों नहीं घोषित किया जाता ?
लेकिन ये समय आरोप प्रत्यारोप का नहीं है बल्कि सबको साथ मिलकर काम करना का है
और इस वायरस से विजयी होने का है ।
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