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इन बाग़ों में ना इन बहारों में
ना चाँद सितारों के रंगीन नज़ारों में
ना झरनों के गिरते आबशारों में
ना इन वादियों की मचलती हवाओं में
मुझसे ना मिला कर
ना ज़िद्द पे अड़ा कर
अब रहा कर -
घर के आंगन में और
चार दीवारों में
और तलाश लिया कर
नेमतखाने की बन्द अल्मारिओं में
कही कुछ बचा हुआ मिल जाये
तो बना लिया कर दिन भर की ग़ज़ाओं में
अब तुझसे ना मिलने में ही मोहब्बत हैं
अब शिक़वे शिकायतें नहीं
बस दुआ किया कर
अपने लिए
आलम के लिए
इंसानियत के लिए
और अपनी मोहब्बत के लिए
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