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सोमवार, 13 अप्रैल 2020

भारत की बदनसीबी क्या भारतीय मीडिया है ? भारतीय मीडिया का गिरता स्तर और स्वतंत्र पत्रकारिता।


दिन प्रतिदिन भारतीय मीडिया का स्तर केवल गिरता जा रहा है बल्की घटिये भी होता जा रहा है। ये कहना  अनुचित होगा के घटिये हो गया है। 2019 में वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत को 140 स्थान प्राप्त हुआ जो वर्ष 2002 की  तुलना में सबसे निचले स्तर पर है।

पिछले कुछ वर्षो में हुई भारतीय पत्रकारों की हत्या, मी टू अभियान, कश्मीर जैसे सववेदनशील मुद्दों पे मीडिया कवरेज, एक समुदाय विशेष के खिलाफ नफरत भरा माहौल बनाना। ये सब कुछ ऐसे बदनुमा दाग़ भारतीय मीडिया के दामन पे है जिसे मिटाना आसान होगा।

अभी हाल ही में CAA -NRC का मुद्दा रहा हो या फिर कोरोना वायरस जैसी  वैशविक महामारी पे जिस तरह भारतीय मीडिया बटा हुआ दिखा ये कई सवाल खड़े करता है। जिसका सही उत्तर शायद दिया जा सके।

पिछले कुछ वर्षो में जो नफरत का माहौल मीडिया ने बनाया है अब उसके प्रणाम भी सामने आने लगे है। मोब लिंचिंग से लेकर अब एक समुदाय विशेष के छोटे दुकानदारों को, रेडी वालो का आर्थिंक भहिष्कार की मांग उठने लगी है। हमें ये नहीं भूलना चाहिए के हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। शायद यही कारण रहा हो के दिल्ली दंगो में दोनों समुदाय का नुक्सान देखने को मिला।  इसी प्रकार अगर मुसलमानो का आर्थिक भहिष्कार किया जाता है तो वो भी एक तरफ़ा नहीं होगा। कम और ज्यादा नुक्सान पे बहस की जा सकती है लेकिन ये वो आग होगी जिसके पीछे सिर्फ और सिर्फ भारतीय मीडिया ज़िम्मेदार होगा।

हमें अब ये देखने को मिल रहा है के भारतीय मीडिया अब सवाल नहीं करता। ये भी मीडिया का कारनामा है के सवाल करने वाला या तो देश द्रोही हो जाता है या अपने अपने चैनल से निकल दिया जाता है। इससे स्वतंत्र पत्रकारिता हमें देखने को मिली जो एक अच्छी बात है। अगर मीडिया ऐसे ही चलता रहा तो शायद खबरों के लिए स्वतंत्र पत्रकारिता ही एक एक मात्र साधन रह जायेगा। 

अगर हमें देश में आपसी भाईचारे का माहौल बनाना है तो इन न्यूज़ चैनलो
भहिष्कार करके स्वतंत्र पत्रकारिता को बढ़ावा देना चाहिए और जो लोग
इससे जुड़े अपना काम ईमानदारी से कर रहे है उनका साथ देना चाहिए।  

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