मेरी जान
जब तुमसे आगाज़ ए गुफ्तगू का सिलसिला शरू हुआ था
मुझे ये दुनिया बदली बदली, नयी नयी सी लगती थी
सरे राह चलते गाने का मन करता था
झूम उठने का भी जी चाहता था
मगर, ये सब नहीं कर सकता था
क्युकी मेरी छवी हमेशा से एक संजीदा इंसान की रही
भले ही हम दोनों तब दूर थे
मगर बात चीत से लगता था
तुम यहीं कही ही मेरे पास हो
फिर हम गुफ्तगू के मरहले में आगे बढ़ते गए
और ना जाने कितनी ही रातों की कहानियाँ है
अठखेलिया है, शोखियाँ है
तब मेरी ज़िन्दगी बिना तुमसे बात किये
मुमकिन ही नहीं थी
कभी अगर ऐसा हो जाये के तुमसे बात न हो
तो मेरे दिल की धड़कने तेज़ और
इक अजब सी बेचैनी रहती थी
फिर हम बात चीत के मरहले को पार कर
जीवन साथी के रिश्ते में बंध गए
मुझे याद है वो इबतिदाई दिनों के मंज़र
मेरी ज़िन्दगी की जैसे तुम ही कमाई थी
मुझे लगता था तुम ही मेरी विरासत हो
और जी चाहता था में हमेशा तुम्हारे पहलू में रहू
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों के पैच औ ख़म से खेलू
मगर रोज़गार की भी फ़िक्र सताती रहती थी
और जब छुटटी के बाद वो पहले दिन
मुझे दफ्तर जाना था तो में बहुत अफ़सुरदा था
लगता था क्या छोड़ कर कहा जा रहा हू
फिर रोज़गार की कश्मकश बढ़ती गयी
और हम दोनों भी असल ज़िन्दगी में आगे बढ़ गए
तुम्हारा लड़ना, झगड़ना, रूठ जाना
मेरा न आते हुए भी तुम्हे मनाना
तुम्हारी शिक़ायतें करना मेरा बहाना बनाना
तुम्हारा मायके जाना और मेरा रोति सूरत बनाना
मुझे सब याद है
मगर
अब में ज़िन्दगी की कश्मकश में
और रोज़गार की जद्दो जेहद में
बहुत उलझ सा गया हू
अब कभी जब तुम मायके चली जाती हो
तो कुछ सांस लेता हू
रोज़ तुमसे बात हो जाये
हाल चाल मिले बस
अब बातों में वो रत जगे नहीं
वो किस्से कहानियाँ वो अठखेलिया नहीं
शोखियाँ कभी कभार हो जाती है
मगर रोज़ रोज़ नहीं जी चाहता
तुम्हे शिकायतें रहती है में बदल गया हूँ
बदल नहीं गया हू मेरी जान
बस उलझ गया हू
मगर, मुझे तुमसे आज भी उतनी ही मोहब्बत है
जितनी हमेशा से थी
तुम अगर आज भी रूठ जाओ और बात ना करो
तो में उतना ही परेशान रहता हू जितना रहा करता था
में जो कमा रहा हूँ वो सब तुम्हारे ही कल के लिए है
बच्चो के मुस्तकबिल के लिए है
और मेरी विरासत तो आज भी
बस तुम ही हो..
जब तुमसे आगाज़ ए गुफ्तगू का सिलसिला शरू हुआ था
मुझे ये दुनिया बदली बदली, नयी नयी सी लगती थी
सरे राह चलते गाने का मन करता था
झूम उठने का भी जी चाहता था
मगर, ये सब नहीं कर सकता था
क्युकी मेरी छवी हमेशा से एक संजीदा इंसान की रही
भले ही हम दोनों तब दूर थे
मगर बात चीत से लगता था
तुम यहीं कही ही मेरे पास हो
फिर हम गुफ्तगू के मरहले में आगे बढ़ते गए
और ना जाने कितनी ही रातों की कहानियाँ है
अठखेलिया है, शोखियाँ है
तब मेरी ज़िन्दगी बिना तुमसे बात किये
मुमकिन ही नहीं थी
कभी अगर ऐसा हो जाये के तुमसे बात न हो
तो मेरे दिल की धड़कने तेज़ और
इक अजब सी बेचैनी रहती थी
फिर हम बात चीत के मरहले को पार कर
जीवन साथी के रिश्ते में बंध गए
मुझे याद है वो इबतिदाई दिनों के मंज़र
मेरी ज़िन्दगी की जैसे तुम ही कमाई थी
मुझे लगता था तुम ही मेरी विरासत हो
और जी चाहता था में हमेशा तुम्हारे पहलू में रहू
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों के पैच औ ख़म से खेलू
मगर रोज़गार की भी फ़िक्र सताती रहती थी
और जब छुटटी के बाद वो पहले दिन
मुझे दफ्तर जाना था तो में बहुत अफ़सुरदा था
लगता था क्या छोड़ कर कहा जा रहा हू
फिर रोज़गार की कश्मकश बढ़ती गयी
और हम दोनों भी असल ज़िन्दगी में आगे बढ़ गए
तुम्हारा लड़ना, झगड़ना, रूठ जाना
मेरा न आते हुए भी तुम्हे मनाना
तुम्हारी शिक़ायतें करना मेरा बहाना बनाना
तुम्हारा मायके जाना और मेरा रोति सूरत बनाना
मुझे सब याद है
मगर
अब में ज़िन्दगी की कश्मकश में
और रोज़गार की जद्दो जेहद में
बहुत उलझ सा गया हू
अब कभी जब तुम मायके चली जाती हो
तो कुछ सांस लेता हू
रोज़ तुमसे बात हो जाये
हाल चाल मिले बस
अब बातों में वो रत जगे नहीं
वो किस्से कहानियाँ वो अठखेलिया नहीं
शोखियाँ कभी कभार हो जाती है
मगर रोज़ रोज़ नहीं जी चाहता
तुम्हे शिकायतें रहती है में बदल गया हूँ
बदल नहीं गया हू मेरी जान
बस उलझ गया हू
मगर, मुझे तुमसे आज भी उतनी ही मोहब्बत है
जितनी हमेशा से थी
तुम अगर आज भी रूठ जाओ और बात ना करो
तो में उतना ही परेशान रहता हू जितना रहा करता था
में जो कमा रहा हूँ वो सब तुम्हारे ही कल के लिए है
बच्चो के मुस्तकबिल के लिए है
और मेरी विरासत तो आज भी
बस तुम ही हो..
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