हुकूमत के दिल से वफादार है हम
इशारो पे चलने को तैयार है हम
मुसीबत से फिर भी गिरफ्तार है हम
मुस्लमान है यु खतावार है हम
सजा मिल रही है अदावत से पहले
समझते है बाग़ी बग़ावत से पहले
मुस्लमान चीन और जापान में है
यही क़ौम रूस और यूनान में है
यही रीत यूरोप और सूडान में है
जहाँ भी है अमन और अमान में है
हर एक मुल्क में तो वफादार है हम
मगर हिन्द में सिर्फ गद्दार है हम
हमें रोज़ धमकी भी दी जा रही है
घरो में तलाशी भी ली जा रही है
बिला वजह सख्ती भी की जा रही है
अदालत यहाँ से उठी जा रही है
जो मासूम थे वो तो मुजरिम बने है
जो बरफित्ना ते आज हाकिम बने है
कौन शहर में हमको ये रहने न देंगे
हमें दर्द अपना ये कहने न देंगे
ग़मो रंज सहिये तो सहने न देंगे
सितम है की आंसू भी बहने न देंगे
ज़ुबाँ बंदियां है नज़र बंदियां है
हमारे लिए सारी पाबंदियां है
अब उर्दू जुबां भी मिटानी पड़ेगी
के बच्चो को हिंदी पढानी पड़ेगी
को यहाँ तक चंदी रखानी पड़ेगी
रहोगे तो शुध्दि करनी पड़ेगी
वफ़ादार होने का म्यार ये है
यकीन फिर भी आ जाये तो दुष्वार ये है
तकाज़ा है अपनी जमात को छोडो
बस तब्लीग़ की तुम जमात को छोडो
मुस्लमान की तुम क़यादत को छोडो
नहीं तो चले जायो भारत को छोडो
यही नज़रियाँ है यही ज़ेहनियत है
इसी का नाम जम्हूरियत है
गिराते हो तुम मस्जिदों को गिराओ
मिटाते हो तुम मकबरों को मिटाओ
बहाते हो खून ए नाहक़ बहाओ
मगर ये समझ कर ज़रा ज़ुल्म ढाओं
मज़ालिम का लबरेज़ जब जाम होगा
तो हिटलर और टीटू सा अंजाम होगा
हमें मुल्क से है भगाने की ख्वाइश
हमें ज़हर से है मिटाने की खवाइश
तो सुन ले जिन्हे है मिटाने की खवाइश
के हमें भी है सर कटाने की खवाइश
कटेगा सर तो ये मज़मून होगा
हिमालय से शिलॉन्ग तक ख़ून होगा
बिहार और U.P में हम कुछ न बोले
हुआ ज़ुल्म दिल्ली में हम कुछ न बोले
किया क़तल गारी में हम कुछ न बोले
घरो में घुस आये तो हम कुछ न बोले
मज़ालिम अगर यु ही होते रहेंगे
तो क्या अहले इमां सोते रहेंगे
अलग होक बरतानिया देखता है
हर एक क़ौम का पेशवा देखता है
ज़माना हर एक माजरा देखता है
कोई देखे या न देखे खुदा देखता है
करेगा जो ज़ुल्म यु आज़ाद होकर
वो खुद मिट जायेगा बर्बाद होकर
(#unknown poet)
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