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शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

ज़ख्म कैसे भी हो कुछ रोज़ में भर जाते है | जावेद अख़्तर की एक नज़म


दर्द के फूल भी खिलते है बिखर जाते है
ज़ख्म कैसे भी हो कुछ रोज़ में भर जाते है
उस दरीचे में भी अब कोई नहीं और हम भी
सर झुकाएं हुए चुप चाप गुज़र जातें है
रास्ता रोके खड़ी है यही उलझन कबसे
कोई पूछे तो कहे क्या की किधर जातें है
नरम आवाज़, भली बातें, मोहज़्ज़ब लहजे
पहली बारिश में ही ये रंग उतर जाते है।


(जावेद अख़्तर)

सोमवार, 25 नवंबर 2019

खुदा के वास्ते अब बेरुखी से काम न ले | साहिर भोपाली की एक मशहूर नज़म








खुदा के वास्ते अब बेरुखी से काम ले
तड़प के फिर कोई दमन को तेरे थाम ले

बस एक सज्दा--शुक्राना पा--नाज़ुक पर
ये मैकदा है यहाँ पर खुदा का नाम ले

ज़माने भर में है चर्चे मेरी तबाही के
मैं डर रहा हूँ कही कोई तेरा नाम ले

मिटा दो शौक़ से मुझ को मगर कही तुम से
ज़माना मेरी तबाही का इंतक़ाम ले

जिसे तू देख ले इक बार मस्त नज़रों से
वो उम्र भर कभी हाथों में अपने जाम ले

रखू उम्मीद--करम उस से अब में क्या "साहिर"
की जब नज़र से भी ज़ालिम मेरा सलाम ले

(#साहिर भोपाली)

रविवार, 24 नवंबर 2019

मिर्ज़ा ग़ालिब की एक मशहूर ग़ज़ल | आ की मेरी जान में क़रार नहीं है


आ की मेरी जान में क़रार नहीं है
ताक़त-इ-बेदाद-इ-इंतज़ार नही है

देते है जन्नत हयात-इ- दहर के बदले
नशा बा_अंदाज़ा-इ-खुमार नही है

गिरियां निकाले है तेरी बज़्म से मुझ को
हाय की रोने पे इख्तियार नही है

हम से अबस है ग़ुमान-इ-रंजिश-इ- ख़ातिर
ख़ाक में उश्शाक़ की ग़ुबार नहीं है

दिल से उठाया लुफ्त-इ-जलवा हाय मायनी
ग़ैर-इ-गुल आइना-इ-बहार नहीं है

क़त्ल का मेरे किया है अहद तो बारे
वाये अगर अहद उस्तवार नहीं है

तू ने क़सम मयकशी की खा ली है 'ग़ालिब'
तेरी क़सम का कुछ ऐतबार नहीं है

#मिर्ज़ा ग़ालिब

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