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शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

तेरे रुख़सार से उड़ती ज़ुल्फ़ों की लटायें | सारे आलम पे जैसे घिरती हो घटायें | Poet Diary

तेरे रुख़सार से उड़ती ज़ुल्फ़ों की लटायें
सारे आलम पे जैसे घिरती  हो घटायें.

तेरी अदाओं से लबरेज़ ये मख़्मूर जलवे
क्या रहे होश मे सब कुछ है लुटायें

अब अपना शौक और उनका करम देखना है
फ़िक्र ऐ अन्जाम क्या है, हाल ए दिल तो सुनायें

बस उन्हें ख़्वाब मे आने भर की देर है
फिर बाद उसके ये मौसम हमें सतायें

हाल ए दिल निगाहों से भी होते है अयाँ
क्या लफ़्ज़ों से उन्हें हम सब कुछ बतायें

इश्क़ के खेल मे कुछ बात आप समझी जाये
हर बात उन्हें बताएं तो क्या क्या बतायें

दीदार ऐ माहताब ज़मीं पे हो जाये सोहैब

जो हवाएं रुख से उनके चिल्मन को हटाएं

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