नज़रें मिली वो दिल मे समाते चले गए
मुझ से मिले वो ऐसे हराते चले गए
उनकी निगाह ऐ नाज़ की उल्फत के सबब हम
सब कुछ उनपर अपना लुटाते चले गए
न छेड़ हाल ऐ दिल, उन्हें दरकार ऐ वक़्त है
वो शौक इ इंतज़ार ऐसे बढ़ाते चले गए
हसना बुरा नहीं था मगर उनकी वो हसीं
एक उम्र के लिए वो रुलाते चले गए
उस नाज़ का ज़िक्र क्योकर हम न करें
हम खुद को ऐसे ही बहलाते चले गए
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