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शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

नज़रें मिली वो दिल मे समाते चले गए | मुझ से मिले वो ऐसे हराते चले गए | Poet Diary


नज़रें मिली वो दिल मे समाते चले गए
मुझ से मिले वो ऐसे हराते चले गए

उनकी निगाह ऐ नाज़ की उल्फत के सबब हम
सब कुछ उनपर अपना लुटाते चले गए

न छेड़ हाल ऐ दिल, उन्हें दरकार ऐ वक़्त है
वो शौक इ इंतज़ार ऐसे बढ़ाते चले गए

हसना बुरा नहीं था मगर उनकी वो हसीं
एक उम्र के लिए वो रुलाते चले गए

उस नाज़ का ज़िक्र क्योकर हम न करें
हम खुद को ऐसे ही बहलाते चले गए



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