रात चमगादड़ और उल्लुओ के लिए बनी है
ऐ बुलबुल तू क्यों शाख से अपने उडी है
तेरी आज़ादी के नाम पे तुझे नचाने वाले
ये लोग नहीं है तुझे बचाने वाले
तू हीरे मोती से जड़ा नायाब नगीना है
नुमाया रात में मुश्किल तेरे लिए जीना है
तुझे नाज़ इस देश मे देवी के किरदार पे है
मगर इज्जत और सम्मान सीता के किरदार पे है
हम भी इस देश के देवता कुछ कम नहीं है
मगर अब राम की भूमिका मे हम नहीं है
ये तनक़ीद तेरी आज़ादी के ख़िलाफ़ नहीं है
मगर ज़माने को अब तेरा लिहाज़ नहीं है
हम इन परिंदों से ज्यादा तो आज़ाद नहीं है
मगर शाम में इनकी भी परवाज़ नहीं है
ऐ बुलबुल तेरी अस्मत खुद तेरे हाथ मे है
वार्ना हर चमगादड़ और उल्लू तेरी घात में है
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