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सोमवार, 30 जनवरी 2017

रेल और ज़िन्दगी | ये रेलगाड़ी है या ज़िन्दगी की कहानी है | सटपट सटपट दोड़ती जैसे जीवन रवानी है | Poet Diary


ये रेलगाड़ी है या ज़िन्दगी की कहानी है
सटपट सटपट दोड़ती जैसे जीवन रवानी है

दिन रात दौड़ती चलती नए मंज़र से गुज़रती
खेत खलियान पहाड़ चट्टान नदी नालों से उभरती
सटपट सटपट  दौड़ती भागती जीवन की तरह

जो जनरल डब्बा है वो गरीब अपना है
लड़ता झगड़ता गिरता पड़ता साथ में चलता है
अपनी जगह के लिए मरता है मगर दुसरो को मरता नहीं

जो स्लीपर डिब्बा है वो मिडिल क्लास अपना है
रहने की जगह लिए अपने ही धुन में चलता है
सुख दुःख में साथ रहता है हमसफ़र बन के चलता है

उप्पर मिडिल क्लास का जलवा है थर्ड AC का डब्बा
अपने में रहता है बड़े लोगो के जलवे दिखाते है
कुछ अकड़ता है कभी कभी हमसफ़र भी बन जाता है
सुख दुःख भी बाट लेता है मगर अपनी अदा में चलता है

अब चलते है सेकंड AC के डब्बे की और
ये है अपना अमीर तबका
अपने में रहना पर्दा खींचे हुए जीना
न किसी के सुख दुःख में शरीक न हमसफ़र किसी का
अपनी अकड़ में रहना अपने आप में जीना
जनरल और स्लीपर डिब्बे को देख रश्क़ करना

फर्स्ट AC के कोच में है इलीट क्लास का जोर
अपने में रहना अपनी अपनी करना
न अगल का ध्यान न बगल का ध्यान
खुद को समझे है भगवान्

ये सब जलवे रेलगाड़ी अपने में समेटे है
मगर जब कोई आपदा आती है तो क्या जनरल क्या फर्स्ट AC
सब एक कतार में खड़े करते है फ़रयादें

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