जामा मस्जिद ग़ाज़ीपुर
ख़म थी पहले मस्जिद
जामा
देख के जिसको दिल था
दीवाना
कह के लब्बैक सब अमीर
व गरीब
उठे उनकी मदद को शिराना
जिस की तंगी हमें
सुनाती थी
कौम की बेहसि का
अफसाना
माल से, ज़र से, दस्त
व बाज़ुओ से
सब ने इम्दाद की
दिलेराना
पर हुए मुस्ता’ाद
बशीर अलहक
दिल में लेकर ख्याल
मरदाना
ऐसी मस्जिद बनी बफज़ल
खुदा
जिस से ज़ाहिर है शान दराना
सुना हिजरी में यु क़मर
ने कहा
है ये अच्छा बना खुदा
ख़ाना
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