मेरी मोहब्बत
तडपता हु फुरकत में
दिन रात तेरी
मोहब्बत मेरी तुमको
आती नहीं है
भुलाऊ में कैसे
तुम्हे शाह कूबा
तेरी याद अब दिल से
जाती नहीं है
मोअत्तर हो जिससे
दिमाग दो आलम
वो इत्र सबा क्यों सुंघाती
नहीं है
रहीम अपने शैदा से
क्यों ऐसा रूठे
के आवाज़ तक भी सुनाती
नहीं है
(शाह अब्दुल रहीम
कुरैशी)
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