अगर हम किसी एक पार्टी की तरफदारी का चश्मा उतार कर देखें तो हमें लगेगा दिल्ली में सिर्फ सरकारी तमाशा हो रहा है। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री श्री सत्येंदर जैन का कहना है के दिल्ली सामुदायिक प्रसारण (कम्युनिटी ट्रांसमिशन) के दौर में पहुँच गया है। यही नहीं दिल्ली के उप मुख्यमंत्री श्री मनीष सिसोदिया का कहना है की अगर ऐसे ही कोरोना वायरस का मामला दिल्ली में बढ़ता रहा तो जुलाई के अंत तक दिल्ली में कोरोना वायरस के मामले 5 लाख से ऊपर जा सकते है। लेकिन केंद्र सरकार ने सामुदायिक प्रसारण (कम्युनिटी ट्रांसमिशन) की बात को नकार दिया है।
वही दूसरी और दिल्ली के मुख्य मंत्री श्री अरविंद केजरीवाल ने इन्ही सब आशंकाओं को देखते हुए दिल्ली के निजी अस्पतालों में कुछ समय के लिए इलाज केवल दिल्ली वालो का हो ऐसा प्रस्ताव पेश किया जिसे दिल्ली के उपराज्यपाल श्री अनिल बैजल के रद कर दिया।
इन सब मुद्दों पे मीडिया के साथ साथ सोशल मीडिया भी बट जाता है और यही देश के लिए असली खतरा है। दरअसल ये कहना कुछ गलत नहीं होगा की किसी भी एक पार्टी की तरफदारी ने इस देश का नुक्सान करना शरू कर दिया है। इसी तरफदारी में कई अहम् सवाल पूछे नहीं जाते या उन्हें पूछने वालो के पीछे एक तंत्र लग जाता है।
इन सब सरकारी तमाशो के बीच नुक्सान केवल दिल्ली वालो का ही है
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ये तमाशा लॉक डाउन के आरम्भ से लेकर अभी तक जारी है। कभी लॉक डाउन सही समय पर हुआ नहीं हुआ। लॉक डाउन में हम कामयाब रहे नहीं रहे । कभी एक समुदाय विशेष के लोगो को कोरोना वायरस के लिए ज़िम्मेदार ठहराना और सरकारी तौर पर केंद्र और राज्य सरकार (दिल्ली) से सरकारी आकड़े जारी करना के इतने प्रतिशत मामले एक समुदाय विशेष के लोगो ने फैलाये है। ऐसे में उन्हें अब भी सरकारी आकड़ा जारी करना चाहिए के बताये की कितने मामले तब्लीग़ी जमात से अब फैल रहे है ? दरअसल जिम्मेदार ठहराने से ज्यादा घातक सरकारी आकड़े जारी करना था। ये समाज में ज़हर घोलने का काम करता है और इससे समाज विभिन्न वर्गों में बट जाता है।
इन सब सरकारी तमाशो के बीच आम जनता उलझ जाती है और अपनी अपनी पार्टी की नाकामी छुपाने के लिए तर्क वितर्क का खेल शरू हो जाता है। मजदूरों के मामले में सरकारें कितनी कामयाब रही ये हम सब जानते है। इन मजदूरों की मदद भी आम जनता और गैर सरकारी संस्था ने ही की। हकीकत में तो सरकारों से रेल गाडी सही तरीके से नहीं चलायी जाती और देश को सही सही दिशा में चलाने का ब्यौरा दे दिया जाता है। हकीकत में तो आज सरकारी ख़ज़ाने ख़ाली हो चुके है और वेतन देने तक के पैसे नहीं है और बातें जीडीपी की होती है।
इस महामारी से हमें खुद ही लड़ना है और जीतना है। और एक दूसरे की मदद भी करती रहनी है। और सरकारों को चुनाव की तैयारी के लिए छोड़ देना चाहिए।
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