कुछ शख्सियत ऐसी होती है जिनपर बहुत कुछ लिखा जा सकता है। ऐसी ही एक शख्सियत थी साहबज़ादे इर्र्फान अली खान की। साल 1967
में राजस्थान के एक पठान खानदान में एक ब्राह्मण पैदा होता है। उनके पिता जब उन्हें बचपन में शिकार पे ले जाया करते थे तो इर्र्फान की रूचि शिकार में नहीं होती थी क्युकी उन्हें बेज़ुबान जानवरो की हत्या पसंद नहीं थी , और वो मॉस मच्छी भी नहीं खाते थे। इस पर उनके पिता मज़ाक में कहते थे के एक पठान के घर ब्राह्मण पैदा हो गया है।
इर्र्फान क्रिकेट बहुत अच्छा खेलते थे और C.K नायडू ट्रॉफी के लिए उनका चयन भी हो गया था लेकिन उनके पास ट्रॉफी में जाने तक के पैसे नहीं थे। शायद ऐसा इस लिए था के उनके लिए ऊपर वाले ने कुछ और ही लिखा था। अपने अंकल से प्रेरित होकर उन्होंने अभिनय में रूचि लेना शरू किया और जयपुर में ही कई मंच नाटक में भाग लेना शरू कर दिया। जयपुर से M.A पास करने के बाद वो साल 1984
में नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में शामिल हो गए।
इर्र्फान का फ़िल्मी सफर सलाम बॉम्बे में एक छोटे से रोल से शरू होता है । इसके बाद उन्हें काफी संगर्ष करना पड़ा और कई टेलीविज़न सीरियल में अभिनय किया। उनके कुछ टेलीविज़न सीरियल की सूचि इस प्रकार है।
- · लाल घास पर नीले घोड़े में लेनिन की भूमिका
- · डर में एक मनोरोगी हत्यारे की भूमिका
- · कहकशां में मखदूम मोहिउद्दीन का किरदार
इसके अतिरिक्त भंवर, चाणक्य, भारत एक खोज, बनेगी अपनी बात, चंद्रकांता, स्पर्श, द ग्रेट मराठा आदि कई अन्य सीरियल उन्होंने अपने अभिनय का जोहर बिखेरा । भला कौन चंद्रकांता सीरियल में बद्रिनात के किरदार को भूल सकता है।
इसी प्रकार उनकी फिल्मो की रूचि भी लम्बी है जिसमे कुछ ख़ास है कमला की मौत (1989
), एक डॉक्टर की मौत (1990
) उनको बड़े परदे पर भी काफी मेहनत और संघर्ष करना पड़ा और वो हासिल (2003
) और मक़बूल (2004
) से मक़बूल हुए और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद आयी द नेमसेक (2006),
लाइफ इन ए मेट्रो (2007
) पान सिंह तोमर (2011
), लंच बॉक्स (2013
), पीकू (2015
), तलवार (2015 )
बॉलीवुड के साथ साथ उन्होंने हॉलीवुड में भी अपना जोहर दिखाया और लाइफ ऑफ़ ए पाई (2012
), द अमेजिंग स्पाइडर मैन (2012
), जुर्रासिक वर्ल्ड (2015
), इन्फर्नो (2016
) जैसी मूवी में अभिनय किया । उनकी बॉक्स ऑफिस पर सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म हिन्दी मीडियम (2017 ) में आयी थी। और उनकी अंतिम मूवी इंग्लिश मीडियम (2020 ) थी ।
साल 2018 ने हम सबको तब चौका दिया था जब इर्र्फान की बीमारी की खबर हमें उनके एक ट्वीट के ज़रिये मिली। तभी से वो न्यूरोएंडोक्रिने टूमौर से लड़ रहे थे और लड़ते लड़ते 29 अप्रैल 2020 को इस फानी दुनिया को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कह कर चले गए। लेकिन एक कलाकार कभी मरता नहीं वो हमेशा अपनी कला और अभिनय से ज़िन्दा रहता है। उनकी एक मूवी का डायलॉग याद आता है जिसमे उन्होंने कहा था "नींद तो माँ की गोद में आती है डॉक्टर साहब " शायद वें अपनी माँ की गोद में ही सो रहे हो।
उनको फिल्मफेयर अवार्ड्स वर्ष से (2004
), (2008 ), (2013) और (2018
) मूवी (हासिल), (लाइफ इन ए मेट्रो), (पान सिंह तोमर ) और (हिन्दी मीडियम ) के लिए सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त स्वतंत्र भावना पुरस्कार (Indipendent
Spirit Award) फिल्म (द नेमसेक) के लिए एशियाई फिल्म पुरस्कार (Asian
Film Award) फिल्म (लंचबॉक्स) के लिए और 2011
में, उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें