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सोमवार, 30 दिसंबर 2019

बन्दे को खुदा क्या लिखना | हुकूमत के खिलाफ हबीब जालिब की एक शानदार नज़्म


ज़ुल्मत को ज़िया, सर सर को सबा, बन्दे को खुदा क्या लिखना
पत्थर को गुहार, दीवार तो दर, कर्गज को हुमा क्या लिखना
इक हश्र बरपा है घर में दम घुटता है गुम्बद ए बे दर में

इक शख्स के हातों मुद्दत से रुसवा है वतन दुनिया भर में
ऐ दीदा वरो इस ज़िल्लत को क़िस्मत का लिखा क्या लिखना
ज़ुल्मत को ज़िया, सर सर को सबा, बन्दे को खुदा क्या लिखना

 ये अहल ए हशम ये डारा औ जाम सब नक्श बार आब है हमदम
मिटजाएंगे सब परवरदा ए शब् ए अहल ए वफ़ा रह जायेंगे हम
हो जान का ज़ियाँ पर क़ातिल को मासूम अदा क्या लिखना
ज़ुल्मत को ज़िया, सर सर को सबा, बन्दे को खुदा क्या लिखना

लोगों पे ही हमने जान वारी , की हम ने ही उन्ही की ग़म ख्वारी
होते हैं तो हों ये हाथ क़लम, शायर न बनेंगे दरबारी
इब्लीस नुमा इंसानो की ए दोस्त सना क्या लिखना

हक़ बात पे कोड़े और ज़िन्दाँ बातिल के शिकंजे में है ये जान
इंसान है की सहमे बैठे हैं खूंखार दरिंदे हैं रक़्सां
इस ज़ुल्म औ सितम को लुत्फ़ औ करम, इस दुःख को दवा क्या लिखना
ज़ुल्मत को ज़िया, सर सर को सबा, बन्दे को खुदा क्या लिखना

हर शाम यहाँ शाम ए वीरां , आसेब ज़दा  रस्ते गलियां
जिस शाम की धुन में निकले थे वो शहर दिल ए बर्बाद कहाँ
सहरा को चमन, बन को गुलशन, बदल को रिदा क्या लिखना
ज़ुल्मत को ज़िया, सर सर को सबा, बन्दे को खुदा क्या लिखना
ऐ मेरे वतन के फनकारों ज़ुल्मत पे न अपना फैन वारों
ये महल साराओं के बासी , क़ातिल है सभी अपने यारों
विरसे में हमें ये ग़म है मिला इस ग़म को नया क्या लिखना
ज़ुल्मत को ज़िया, सर सर को सबा, बन्दे को खुदा क्या लिखना

हबीब जालिब

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