ए सनम जिसने तुझे चाँद सी सूरत दी है
उसी अल्लाह ने मुझको भी मोहब्बत दी है
तेग बे आब है न बाज़ू- ए -कातिल कमजोर
कुछ गिरां जानी है कुछ मौत ने फुर्सत दी है
कोई अक्सीर, गनी दिल नहीं रखती ऐसा
खाकसारी नहीं दी है मुझे दौलत दी है
फुरक़त- ए -यार में रो रो के बसर करता हु
ज़िंदगानी मुझे क्या दी है मुसीबत दी है
याद- ए -महबूब फ़रामोश न होवे ए दिल
हुस्न-े ए -नियत ने मुझे इश्क़ सी नेमत दी है
गौशे पैदा किये सुनने को तेरा ज़िक्र- ए –जमाल
देखने को तेरे आँखों ने बसारत दी है
लुत्फे दिल बस्तगी आशिक़ शैदा को न पूछ
दो जहाँ से इस असीरी ने फरागत दी है
क़मर -इ-यार के मज़मून को बंधू 'आतिश'
ज़ुल्फ़-इ-खुबा से मरे तुम को तबियत दी है.
.(आतिश लखनवी)
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