चंद अफ़राद ये सोचते है के वो
आवाज़ ऐ हक़ दबा देंगे
शोर मचा के सच को छुपा देंगे
नफरत फैला कर मोहब्बत मिटा देंगे
बस्तियां जला कर दिलों में आग लगा देंगे
मगर
आवाज़ ऐ हक़ दब न सकेगी
सच ज़ाहिर होकर रहेगा
मोहब्बत फैल कर रहेगी
मोहब्बत फैल कर रहेगी
दिल मिलकर रहेंगे
तुम्हारी सफ़ेद आस्तीनों से खून टपकता है
इसके धब्बे तुम धो तो लोगे
मगर ये खून तुम्हारी रूह में बस चुका है
उसे तुम मिटा नहीं सकते
तुम्हारी सोच, इरादे, ज़ेहनियत से हम वाकिफ है
ये वही पुरानी है ज़हर अफ्शां
जब जब तुम सर गरम होते रहोगे
तब तब हम सामने आते रहेंगे
तुम्हारे ज़ुल्म से खलकत मिट न सकेगी
और हम लेकर रहेंगे आज़ादी
तुम्हारी सोच से, इरादो से, ज़ेहनियत से, ज़ुल्म से
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