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रविवार, 5 मार्च 2017

दिल से, जिगर से, लहू से लिख रहा हु | तुझे ए सनम बेवफा लिख रहा हु.

दिल से, जिगर से, लहू से लिख रहा हु
तुझे ए सनम बेवफा लिख रहा हु.

इश्क़ के फ़साने भी क्या खूब लगते  है
क्यों लोग इश्क़ करते है, क्यों उनको गम मिलते है
क्यों तूने हमसे प्यार किया, क्यों तू हमको भूल गयी
क्या ये हकीकत तेरी थी या फिर ग़ुरबत मेरी थी
में अपनी ही ग़ुरबत को दोष देकर
खुद को तनहा लिख रहा हु.
दिल से जिगर से……………………………

इश्क़ की हकीकत कुछ नहीं एक झूठा नग़्मा  है
सब प्यार की बातें झूठी है, सब यार की बातें झूठी है.
सब रिश्ते नाते झुटे है, सब दिल की कहानी झूठी है.
क्या ये अदाएं तेरी थी, या फिर किस्मत मेरी थी
में अपनी किस्मत पे  इलज़ाम धर कर
खुद को बदनसीब लिख रहा हु
दिल से जिगर से………………………………………

सनम किस क़दर मुश्किल है तेरे बिना जीना
ये सर्द हवाएं तड़पायेगी, ये बिरहा की धुप जलायेगी.
ये आती बहारे सताएंगी, ये जाता सावन रुलायेगा
क्यों तूने बेवफ़ाई की, क्यों तूने हमको ग़म  दिया
तुझसे गिला न करके,
में बहारो पे इलज़ाम लिख रहा हु
दिल से जिगर से………………………………………






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