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मंगलवार, 24 जनवरी 2017

क़यामत के निशाँ | तेरे रुक्सार पे बिखरे तिल के निशाँ | पोशीदा है इसमें क़यामत के निशाँ | Poet Diary


तेरे रुक्सार पे बिखरे तिल के निशाँ
पोशीदा है इसमें क़यामत के निशाँ

मेहरबान होक आ जाओ एक घडी के लिए
तुम्हारे रास्तों में बिछी है कहकशाँ.

हसीं रुक्सार से हस्ते हुए बिजली गिरती है
अपना गम मुझे देके न रहो तुम परेशां

तेरी जुस्तुजू में तेरे शहर में इतना फिरे है
छपा हुआ है दिल ओ दिमाग में मेरे नक़्शा

तुम इतने हसीं हो इसमें तुम्हारा क्या कमाल
खुदा ने ये रंग ओ जमाल तुम्हे है बक्शा

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