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सोमवार, 30 जनवरी 2017

एक फ़लसफ़ाई क़लाम | इब्तिदा मै तनहा थे इन्तिहाँ में तनहा होंगे | Poet Diary


इब्तिदा मै तनहा थे इन्तिहाँ में तनहा होंगे
यानि तनहा ज़माने में आये थे तनहा जाना है
यही ज़िन्दगी का हासिल है यही  हकीकत है
फिर विसाल ए यार मयस्सर न हुआ तो क्या हुआ?
फिर ता उम्र जुस्तुजू ए यार का ख़वाब कैसा?
फिर इस फानी दुनिया में वफ़ा की उम्मीद किससे?
फिर ज़िक्र ए यार का गिला किससे, बेवफाई कैसी?



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