जुनून-ए-शौक़ अब भी कम
नहीं है
मगर वो आज भी बरहम
नहीं है
बहुत मुश्किल है
दुनिया का संवरना
तेरी जुल्फों के पेच-औ-ख़म
नहीं है
बहुत कुछ और भी है
जहां में
ये दुनिया महज़ गम ही
गम नहीं है
मेरी बर्बादियों के
हम_नशीनो
तुम्हे क्या खुद मुझे
भी ग़म नहीं है
अभी बज़्म- ए -तरब से
क्या उठूँ मै
अभी तो आँख भी पुर नम
नहीं है
'मजाज़' एक बादाकश तो है यक़ीनन
जो हम सुनाते थे वो
आलम नहीं है
(मजाज़ लखनवी)
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