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बुधवार, 10 जनवरी 2018

बहुत मुश्किल है दुनिया का संवरना | तेरी जुल्फों के पेच-औ-ख़म नहीं है | मजाज़ लखनवी | उर्दू ग़ज़ल


जुनून-ए-शौक़ अब भी कम नहीं है
मगर वो आज भी बरहम नहीं है

बहुत मुश्किल है दुनिया का संवरना
तेरी जुल्फों के पेच-औ-ख़म नहीं है

बहुत कुछ और भी है जहां में
ये दुनिया महज़ गम ही गम नहीं है

मेरी बर्बादियों के हम_नशीनो
तुम्हे क्या खुद मुझे भी ग़म नहीं है

अभी बज़्म- ए -तरब से क्या उठूँ मै
अभी तो आँख भी पुर नम नहीं है

'मजाज़' एक बादाकश तो है यक़ीनन
जो हम सुनाते थे वो आलम नहीं है

(मजाज़ लखनवी)

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