रोज़गार की तलाश में
एक एक करके सब दोस्त-यार
शहर की तरफ चल दिए...
ज़िन्दगी की तलाश में
दौड़ते भागते चले जा रहे है
हु हां का आलम है
जीते चले जा रहे है
इस कश्मकश में
चंद कागज़ के टुकड़े
ज़्यादा कमा लिए है हमने
मगर पीछे छूट गया है
वो जाने पहचाने से
अपने रास्तें, अपनी सड़के
वो सुकून के पल
वो फुर्सत के लम्हे
वो मोहल्ले की मोहब्बतें
वो यार दोस्त वो रिश्ते पुराने
चंद कागज़ के टुकड़ों की ख़ातिर
ये सब खो दिया है हमने.
कभी उम्र की ढ़लान पे ये ख़याल आएगा
के लौट चले हम
तो पीछे छूटा कुछ न होगा
शायद किस्से कहानियाँ हो तो हो
नहीं तो रह जायेगी बस
कुछ यादें पुरानी, कुछ तसवीरें धुंदली सी
हम भी बदल गए होंगे
नाम भी बदल गया होगा
बाप दादा के बाद
गाँव से रिश्ता छूट जायेगा
बच्चे हमारे शहर में
पलेंगे, पढ़ेंगे, बढ़ेंगे
मुलाज़मत भी यही करेंगे
और हम शहरी बाबू कहलायेंगे
ज़िन्दगी के इसी खेल में
शहर बढ़ते चले जायेंगे
गाँव तनहा होते चले जायेंगे
और एक वक़्त ये भी आएगा
शहर में रहते हुए भी तन्हा होंगे हम
रोज़गार की तलाश में
कहा आ गए हम
क्या छोड़ आये हम........
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