निफ्स शब् ढ़ले नींद का ग़लबा हो जाता है तारी
और यादों से तेरी आंखें खुलती है बारी बारी।
अंधेरी फ़िज़ाओं में फ़क़त गूंजी है तेरी सदाऐं
बस ये चाँद ओ सितारें सुनतें है बातें हमारी।
हर घड़ी ये सोचू के ख़ता थी तो आख़िर क्या थी
तुम्हें भूल जाने की कोशिशें बेकार है सारी।
मोहब्बत के लम्हे भी अब तो लगते है एक मज़बूरी
नज़र के फरेबों में गुज़री है उम्र सारी की सारी।
अब बाकी क्या रहा न कोई गिला न शिक़वा किसी से
जो ख़वाब थे आँखों में सब धुंधला गए बारी बारी।
सबब क्या था गुनहग़ार कौन था तुम परेशान मत होना
तेरा नाम भी लू अगर तो कलेजा कटता है बारी बारी।
वफ़ा और फरेब के सिलसिलें यू ही चलते रहेंगे
नादाँ है जिसने उम्मीद ऐ वफ़ा में उम्र गुज़ारी।