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शनिवार, 26 मार्च 2022

चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है | Poet Diary | Hasrat Mohani

 चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है

हम को अब तलक आशिक़ी का वो ज़माना याद है। 


बा हज़ारा इज़तिराब व ज़िद हज़ारा इश्तियाक़

तुझसे वो पहले पहल दिल का लगाना याद है। 


बार बार उठना उसी जानिब निग़ाह ऐ शौक़ का 

और तेरा गुर्फे (खिड़की) से वो आँखें लड़ाना याद है। 


तुझसे कुछ मिलते ही वो बेबाक़ हो जाना मेरा

और तेरा दांतों में वो ऊँगली दबाना याद है। 


खेंच लेना वो मेरा पर्दे का कोना दफ़अतन

और दुपटटे से तेरा वो मुँह छुपाना याद है। 


जान कर सोता तुझे वो क़स्दे प् बोसी मेरा

और तेरा टकरा के सर वो मुस्कराना याद है।


तुझ को जब तनहा कभी पाता तो अज़ राहे लिहाज़

हाल ऐ दिल बातों ही बातों में में जाताना याद है। 


जब सीवा मेरे तुम्हारा कोई दीवाना न था 

सच कहो कुछ तुमको भी वो कारख़ाना याद है। 


ग़ैर की नज़रों से बच कर सबकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ 

वो तेरा चोरी चुपके रातों को आना याद है। 


आ गया गर वस्ल की शब् भी कही ज़िक्र ऐ फ़िराक

वो तेरा रो रो के मुझ को भी रुलाना याद है। 


दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए 

वो तेरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है। 


आज तक नज़रों में है वो सोहबतें राज़ो नियाज़

अपना जाना याद है तेरा बुलाना याद है। 


मीठी मीठी छेड़ कर बातें निराली प्यार की 

ज़िक्र दुश्मन का वो बातों में उड़ाना याद है। 


देखना मुझको जो बरगुज़िश्ता तो सो सो नाज़ से

जब मना लेना तो फिर खुद रूठ जाना याद है। 


चोरी चोरी हमसे तुम आकर मिले थे जिस जगह 

मुद्दतें गुज़री पर अब तक वो ठिकाना याद है। 


शौक़ में मेंहदी के वो बे दस्त व प् होना तेरा

और मेरा वो छेड़ना वो गुदगुदाना याद है। 


बावजूद अदाऐं इतका हसरत मुझे

आज तक अहद ऐ हवस का वो फ़साना याद है। 


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