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रविवार, 29 जुलाई 2018

कभी यक ब यक तवज्जो कभी दफ्तन तग़ाफ़ुल | शकील बदायूंनी | Poet Diary



ग़म ए इश्क़ रह गया है ग़म ए जुस्तुजू में ढल कर वो नज़र से चुप गए है मेरी ज़िन्दगी बदल कर

तेरी गुफ़्तगू को नासेह दिल ऐ ग़म ऐ ज़दा से जल कर
अभी तक तो सुन रहा था मगर अब संभल संभल कर

न मिला सुराग ए मंज़िल कभी उम्र भर किसी को नज़र आ गयी है मंज़िल कभी दो क़दम ही चल कर

ग़म ऐ उम्र ऐ मुख़्तसर से अभी बेख़बर है कलियाँ
न चमन में फेक देना किसी फूल को मसल कर

है किसी के मुन्तज़िर हम मगर इ उम्मीद मुबहम
कही वक़्त रह न जाये युही करवटें बदल कर

मेरी तेज़ गामियो से नहीं बरक़ को भी निस्बत कही खो न जाये दुनिया मेरे साथ साथ चल कर

कभी यक ब यक तवज्जो कभी दफ्तन तग़ाफ़ुल मुझे आज़मा रहा है कोई रुख बदल बदल कर

है 'शकील' ज़िन्दगी में ये जो वुसअतें नुमाया इन्ही वुसअतों से पैदा कोई आलम ए ग़ज़ल कर.

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